
जुबाँ खामोश बेबस है,मगर आवाज देती है,
इक माँ के गर्भ में सहमी हुई लाचार बेटी है,
रगों में दौड़ता उसके लहू पत्थर नहीं है वो,
कि जैसे साँस तुम लेते हो वो भी साँस लेती है|
उसे जीना है दुनियां में,है इसमे कुदरत कि रजा,
सुना दी किसने उसको गर्भ में ही मौत कि सजा,
जिसको मौत का मंजर दिखाना चाहते हो तुम,
कि उस मासूम ने कहाँ अभी दुनिया ही देखी है|
ठेका ले लिया है मौत का पैसों को जब थामा,
वो हैं जल्लाद जिनंके हांथ में है क़त्ल का सामां,
रहम खाओ जरा उस बेजुबाँ पे संग दिल वालो,
किसी निर्दोष के मरने पे कायनात रोती है|
इक बात घुट -घुट कर के जो मै सोचती हर पल,
सुरखछित रह गया क्या गर्भ बेटों के लिए केवल ,
उसे हांसिल है सबका प्यार आखिर मर्द जो ठहरा,
नहीं बेटे सी किस्मत है ये मेरी बदनशीबी है|